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Sunita Jain Ki Lokpriya Kahaniyan (Hindi)

Sunita Jain Ki Lokpriya Kahaniyan (Hindi)

Sunita Jain
264 300 (12% off)
ISBN 13
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9789386300416
Year
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2017
समकालीन भारतीय परिदृश्य में प्रस्तुत कहानियाँ और भी अधिक प्रासंगिक हो उठीं है। बहुत पहले ही इन कहानियों ने जैसे अनिष्ट की छाया देख ली हो। माता-पिता के लिए अमेरिका में रह रहे बच्चे भी अजनबी होते जाते हैं। कई वर्षों बाद जब माँ अपने बेटे, बहू और नातियों से मिलने भी जाती हैं तो उसे कई समझौते करने होते हैं। इन कहानियों में गंभीर विमर्श भी है, जिनके माध्यम से सुनीता जैन की ही रचना प्रक्रिया को समझने के सूत्र मिलते हैं। इनकी कहन शैली में एक विशेष गुण यह है कि लेखिका से हम दो स्तरों पर जुड़ते हैं। हमें लगता है कि हम कहानी ?पढ़? नहीं रहे, वरन् ?सुन? रहे हैं। सुनीता जैन अपने पात्रों को गहन अंधकारमय गुफा में रोशनी की एक सतीर दिखाती हैं। वे हमारी उँगली पकड़ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलती हैं। अंधकारमय जगत् में वे एक-न-एक रोशनदान खुला रखती हैं। कब क्या पढ़ना चाहिए और कब क्या नहीं पढ़ना चाहिए की समझ को सुनीता जैन कहानी के मध्य लाती हैं। ऐसा नहीं है कि अमरीकी सभ्यता को दोयम दरजे की घोषित करना लेखिका का मंतव्य हो। वे भारतीयों की फिसलन और सामाजिक ढोंग-ढर्रे की भी अच्छी खबर लेती हैं। यह संकलन हमारे समकालीन समाज की आलोचना है। ये कहानियाँ स्त्री-पुरुष, घर-परिवार को उसके सामाजिक परिदृश्य में स्थापित करती हैं।