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Samay ki Panchayat (Hindi) (Hardback)

Samay ki Panchayat (Hindi) (Hardback)

Durgaprasad Agrawal
420 500 (16% off)
ISBN 13
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9789387809888
Year
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2020
आज़ादी के सात दशक बाद देश जिस मोड़ पर आ खड़ा हुआ है उसके लिए फैज़ के शब्दों में कहा जा सकता है - ‘ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर। वो इंतज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं’। हालात को बेहतर करने के सारे वादे जब जुमलों में बदल रहे हों, जनता हर पाँचवें बरस ठगी को अभिशप्त हो, तब लेखक का दायित्व बढ़ जाता है। क्योंकि वह न सिर्फ़ परदे के पीछे की हक़ीक़त से वाक़िफ़ है, बल्कि उस सच को उजागर करने का हुनर भी उसके पास है। लिखने से सबकुछ नहीं ठीक नहीं होगा, पर कुछ तो बदलेगा। कुछ न भी बदले, ‘सबकुछ ठीक है’ का फैलाया गया भ्रम तो टूटेगा क्योंकि आनेवाले ख़तरों की पदचाप को अनसुना करना आत्मघाती होता है। समस्या को जानना और मानना उसके समाधान की दिशा में पहला क़दम है, और यही प्रयास यह पुस्तक है -‘समय की पंचायत’। ऐसे नाज़ुक समय में जब बोलना ही मुश्किल है, सच बोलना तो दरकिनार, तब समय की नब्ज़ को पहचान कर हमारे समय का कड़वा सच पूरी लोकतांत्रिकता और स्पष्टता के साथ सामने रखकर यह पुस्तक एक ज़िम्मेवार नागरिक के कर्तव्य का निर्वहन करती है। लम्बे समय तक उच्च शिक्षा से जुड़े रहे डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल एक सजग नागरिक की तरह तमाम समस्याओं पर विचार करते हैं और किसी रास्ते की सामूहिक तलाश के लिए पाठक को उद्यत भी करते हैं। इन आलेखों में विचार और भाषा का मंजुल सहकार मिलता है जो किसी अनुभवी लेखक की सधी हुई कलम से ही संभव है। अपने देश से गहरे प्रेम से उपजी यह चिंतन शृंखला पाठकों को विचार -मनन और सक्रिय हस्तक्षेप के लिए प्रेरित करती है। कहना न होगा कि निबंधों की यह परम्परा हिंदी में बालमुकुंद गुप्त, बालकृष्ण भट्ट, महावीरप्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई और रघुवीर सहाय की याद दिलाती है। डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल इस परम्परा के वाहक और वारिस हैं, इसमें कोई संदेह नहीं।