दादूपंथ दादूदयाल के व्यापक भ्रमण, प्रवचन, शिष्य निर्माण एवं कवित्व का सुव्यवस्थित विस्तार है । यह संग्रहणीय ग्रंथ इसी स्थायी महत्त्व की अनूठी परंपरा को आज के पाठकों, पुस्तक प्रेमियों और अध्येताओं के लिए प्रस्तुत करने का एक गंभीर प्रयास है । दादूदयाल सहित यहां जिन कवियों पर उल्लेखनीय चर्चा की गई है, वे हैं–––जगजीवन, संत रज्जब, सुन्दरदास एवं निश्चलदास । प्रो. नन्द किशोर पाण्डेय ने यहां बखना, वाजिंद तथा मोहन दफ्तरी के कार्यों को रेखांकित करने के साथ ही दादूपंथ का महत्त्व हिन्दी भक्ति साहित्य को भाषा व रचना के धरातल पर समृद्ध करने के लिए स्थापित किया है । यह उल्लेखनीय है कि इस ग्रंथ में पाठ प्रामाणिक संग्रहों से हैं । संत दादूदयाल की रचनाएं यहां स्वामी नारायणदास की टीका के साथ प्रस्तुत हैं । दादूपंथ में रुचि रखने वालों के लिए ही नहीं, भारतीय साहित्य के स्तरीय पाठकों हेतु भी यह ग्रंथ इसलिए संग्रहणीय है कि विद्वान अध्येता ने इसमें दादूदयाल और उनकी शिष्य परंपरा पर पूरे चिंतन और मनन के साथ बात की है । यह ग्रंथ दादू दर्शन को समझने की दृष्टि से ही नहीं, गुरु तत्त्व, सामाजिक मनोदशा तथा भक्ति परंपरा की प्रस्तुति का ऐसा सुचिंतित प्रयास है जिसमें विगत तीन सौ वर्षों की चेतना प्रतिबिंबित है । यह कहना आवश्यक है कि शोधार्थियों, पुस्तकालयों और विश्वविद्यालयों के लिए यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी एवं संग्रहणीय है ।